माँ
माँ कभी बेटों से फुर्सत मिले
तो ज़रा इधर भी नज़र करना ,
तेरी बेटी भी खड़ी है
ज़रा मेरी भी कद्र करना ,
मेरी क्या गलती ,जो बेटी हूँ मैं ,
दुखों की सेज पे लेटी हूँ मैं ,
बेटों के लिए नहीँ थकती दुआएँ करती ,
कभी मेरे लिए भी दुआ -ए -करम करना ,
माँ कभी बेटों से फुर्सत मिले
तो ज़रा इधर भी नज़र करना ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कभी अकेली बैठी होती हूँ तो सोचती हूँ मैं ,
अपनी ही क़िस्मत को कोसती हूँ मैं ,
क्यों लड़का मुझे बनाया ना ,
क्यों तेरा दुलार मैंने पाया ना ,
कभी भूले से मुझपे भी रहम करना ,
माँ कभी बेटों से फुर्सत मिले
तो ज़रा इधर भी नज़र करना ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
लेकिन फिर भी कभी ना हारूँगी मैं ,
अपने वज़ूद को यूँ ही ना मारूँगी मैं ,
जो भेदभाव का पर्दा है लोगों की आँखों पर ,
इक दिन उस पर्दे को उतारूँगी मैं ,
समझाऊँगी लोगों को,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
के फिर कोई बेटी ना कोख में दफन करना ,
माँ कभी बेटों से फुर्सत मिले
तो ज़रा इधर भी नज़र करना ,
तेरी बेटी भी खड़ी है ,
ज़रा मेरी भी कदर करना। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मीनू तरगोत्रा