तेरे नैनों से,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे नैनों से इतनी पी ली ए रहबर,
के अब ज़रूरत ही नही मयखाने की ,
ऐसा सुरूर था उन मय के प्यालों में ,
के हर कोशिश नाकाम है हमारी ,
होश में आने की ,
वक़्त बदल गया मगर तू नही बदला ,
गयी नही आदत तेरी हमें तड़पाने की ,
कत्ल करने का इरादा है ,
तेरे इन नैनों का ,
और हमारी भी तम्मना है कत्ल हो जाने की ,
मदहोशी सी छाई है ना होश -ओ -हवास है ,
ख़बर ही कहाँ है हमें अब इस ज़माने की ,
बना लिया है तूने हमें गुलाम अपना ,
तू ही है वजह मेरे शायर बन जाने की ,
लाख छुपाऊँ ,पर ज़िक्र बातों में आ ही जाता है तेरा ,
बहुत कोशिश करते हैं हम ,
तुझे सबसे छुपाने की ,
तुझसे रूठ भी गए तो क्या फायदा ए -सनम ,
तू कोशिश ही नही करता हमको मनाने की ,
या तो तेरी जोगन बन जाऊँ मैं ,
या ले लूँ कसम आज तुझको भुलाने की। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मीनू तरगोत्रा
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