इम्तेहान
बस खुदा अब ना ले मेरे सब्र का इम्तेहान ,
अब तो पूरा करदे मेरे दिल का इक अरमान ,
बस उनसे हो जाये हमारी इक मुलाकात ,
फिर शायद बच सकती है ये मेरी जान ,
सात साल लगते है ,अब तो सात जन्मों से ,
भूल से गए हैं बाकि सारा ही जहान ,
याद है बस हमें मोहब्बत उनकी ,
उन पर हमारी ये ज़िन्दगी कुर्बान ,
अब तो खुद में भी अक्स दिखता है उनका ,
कहीं भूल ना जाऊं मैं अपनी ही पहचान ,
बस खुदा अब ना ले मेरे सब्र का इम्तेहान ,
अब तो पूरा करदे मेरे दिल का इक अरमान। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मीनू तरगोत्रा
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